उत्तराखंड: शिकार कर खून चूसता है यह पौधा, प्लांट टैक्सोनॉमी एंड बॉटनी पत्रिका में हुआ जिक्र
हमेशा से सुना है शिकार सिर्फ जंगलों में रहने वाले जंगली जानवर करते है, लेकिन क्या आपने सुना है की जंगलों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पौधें भी शिकार करते

इस प्लांट के खोजकर्ता रेंज ऑफिसर रिसर्च विंग गोपेश्वर हरीश नेगी और जेआरएफ मनोज सिंह ने कहा कि प्लांट की खोज के बाद इसकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए लंबा अध्ययन किया गया। इसके लिए आधुनिक तकनीक जैसे इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोपी आदि की मदद ली गई और हर्बेरियम का मिलान कर अध्ययन रिपोर्ट विभिन्न संस्थानों को भेजी गई। देहरादून स्थित भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के वैज्ञानिक सह निदेशक सुशील कुमार सिंह ने भी इसमें बहुत योगदान दिया। जेआरएफ मौज सिंह का कहना है साल 1986 के बाद से ऐसे पौधों की प्रजाति दोबारा नहीं मिली। क्यूंकि पर्यटन स्थल होने कारण से जैविक दवाब ज्यादा बढ़ता है जिससे कुछ ख़ास किस्म के पौधों की प्रजातियां नहीं मिल पाती है।
इस पौधे का वैज्ञानिक तौर पर नाम है यूट्रीकुलेरिया यह आम पौधे से अलग होते है ऐसे पौधे दलदली भूमि या पानी के पास उगते हैं और उन्हें नाइट्रोजन की उच्च आवश्यकता होती है। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी में तैनात मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने कहा कि ऐसे पौधे न केवल ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि कीड़ों मकोड़े से भी बचाते हैं। जब यूट्रीकुलेरिया को पोषक तत्व नहीं मिलता है, तो वे कीड़ों और पतंगों को खाकर इसकी कमी को पूरा करते हैं। वे आम पौधों से थोड़े अलग दिखते हैं। इनके पत्ते शिकार को पकड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। दुनिया में ऐसे कीटभक्षी पौधों की 400 प्रजातियां हैं, जिनमें से 30 प्रकार के पौधे भारत में पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह दुर्लभ पौधा पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में पहली बार पाया गया है।
बता दे साल 2021 में इस पौधे को लेकर शोध शुरू हुआ था। सितम्बर 2021 में उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च विंग की टीम में शामिल गोपेश्वर रेंज के जेआरएफ मनोज सिंह और रेंजर हरीश नेगी को चमोली जिले की मंडल घाटी के उच्च हिमालयी क्षेत्र में एक पौधा मिला। 2 से 4 सेंटीमीटर तक इस पौधे के बारे में विस्तार से अध्ययन करने पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। यह Utricularia fursillata एक कीटभक्षी पौधा है, जो कीड़ों के लार्वा को खाता है और उनसे नाइट्रोजन प्राप्त करता है। डॉ. एसके सिंह (संयुक्त निदेशक बीएसआई देहरादून) ने संयंत्र के बारे में जानकारी एकत्र करने और शोध पत्र तैयार करने में अनुसंधान दल की सहायता की।