जानिए कैसे अल्मोड़ा के आशीष पंत बने उत्तराखंड के पैडमैन
पीरियड्स एक ऐसा शब्द जो महिलाओ की ज़िन्दगी का एक ख़ास हिस्सा है.

मगर ऐसे ही समाज को बदलने के लिए एक हीरो हमेसा सामने आते है अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन तो सभी को याद होगी जो की रियल पैडमैन अरुणाचलम मुरुगननाथम की ज़िन्दगी पर बनी हुई है, मगर आज हम आपको रूबरू करायेंगे उत्तराखंड के पैडमैन आशीष पन्त से जिनके साथ कोरोना माहवारी के वक़्त घटी एक घटना ने उन्हे इस कदर झकझोरा की आज वो बन गए उत्तराखंड के पैडमैन.
अल्मोड़ा के आशीष पन्त बताते है की बात साल 2020 की है जहा पूरे देश में lockdown लगा हुआ था इसी दौरान उनकी बहन और आशीष के अन्दर भी कोरोना माहवारी के लक्षण दिखने लगे जिसकी जांच करवाने वह जिला अस्पातल गए जहा जांच की रिपोर्ट 3 दिन बाद आनी थी तब तक के लिए आशीष और उनकी बहन को अस्पताल में ही रहने के लिए कहा गया शुरुआत के दो दिन तो बीत गए मगर तीसरे दिन आशीष की बहन की तबियत बिगड़ गई आशीष ने पूछा तो उनकी बहन ने खुल के जवाब नहीं दिया कहा की पेट में दर्द हो रहा है आशीष ने कहा की दवाई लेलो तब आशीष की बहन ने कहा की ये पेट दर्द दवाई वाला नहीं बल्कि वो पेट दर्द है जो लडकियो को हर महीने होता है आशीष बताते है की उनकी बहन ने आगे कुछ खुल कर नहीं कहा मगर आशीष समझ गए थे उन्होने अपने दोस्त से कहके सेनेटरी पैड मंगवाया कुछ देर बाद उन्होने देखा की उनका दोस्त एक लिफाफे में सेनेटरी पैड लेकर आया और फिर आशीष के मन में वो सवाल उठा जिस सवाल ने आशीष को बना दिया पैडमैन सवाल था की क्यों उनकी बहन उनसे खुल के कह नहीं पाई, क्यों आज भी दुकानों पर जो सेनेटरी पैड मिलता है उसे इतना छुपा कर दिया जाता है जब ये कोई गलत चीज़ नही तब भी आज भी क्यों उनकी बहन जैसे हजारो लडकियों को मासिक धर्म के वक़्त गौशाला में जानवरों के साथ रहना पड़ता है.
इसके बाद आशीष ने शुरू की वो लड़ाई जिससे समाज को उभार के आगे लाना था रूडिवादी सोच को हराना था मगर पुरुष होने के नाते इस जंग को लड़ना आसान नहीं था कठनाईया बहुत थी मगर आशीष ने हार नहीं मानी और अपनी प्रोफेसर इला साह के साथ गाँव गाँव जाके लोगो को जागरूक किया मगर पहले जहा गाँव के सरपंचो ने आशीष को पागल कहकर उनकी मदद करने से मना किया वही अब गाँव के लोग खुद आगे आके आशीष के साथ बच्चियों को और महिलाओ को जागरूक कर रहे है की उन दिनों दर्द और माहवारी गलत नहीं है, गलत है आपका उस समय पर ख्याल नहीं रखना और कपडे का इस्तेमाल करना,साफ जगह पर सौच करना और गौशाला में सोन.
आशीष का कहना है की वह अल्मोड़ा में सेनेटरी नैपकिन की मशीन लगवाना चाहते है जिससे वो महिलाये या बच्चिया जो सेनेटरी नैपकिन लेने में समर्थ नही है या दूर दराज गाँव में रह रही है उन तक सेनेटरी नैपकिन पहुचाई जा सके.वही आशीष द्वारा चलाये जा रहे जागरूक अभियान से बच्चियों पर क्या असर पड़ रहा है वो भी आप देखिये.
आशीष कहते है माशिक धर्म से जुडे अभियान को शुरू करने के बाद कई लडकियो ने उनसे संपर्क किया और उन सबकी बातो में एक बात हर स्त्री ने कही की काश ऐसा होता की ये मासिक धर्म होता ही नहीं हम भी इस दर्द के बिना और कही दाग न लग जाए या दाग लग गया तो लोग क्या सोचेंगे उसके बिना आराम से जी पाते बहराल आशीष का कहना है की वह प्रकीर्ति के नियम को तो नहीं बदल सकते मगर हां उन दिनो में महिलाओ की सहायता जरूर कर सकते है.